Monday, 15 November 2021

उधार




कभी कुछ बोल देते हो तुम 

ऐसे ही... कोई हँसने रोने की बात

और ले कर बैठ जाती हूँ मैं 

रात दिनदिन रात।


और फिर कहने लगती हूँ तुमसे,

के ऐसा नहीं हैवैसा नहीं है

और तुम पकड़ लेते हो मेरे हाथ...


जैसे झूठ पकड़ा जाता है

एकाएक... एक बार 

और सहम जाती हूँ मैं

यूँ ही कभी कभार


कि नहीं लौटाया हो मैंने

कभी कुछ लिया होगा...

तुमसे कोई उधार


जो आज तुमको याद आया

और तुमने बोल दी 

ऐसे ही... कोई हँसने रोने की बात

अकस्मात् 

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