कभी कुछ बोल देते हो तुम
ऐसे ही... कोई हँसने रोने की बात
और ले कर बैठ जाती हूँ मैं
रात दिन, दिन रात।
और फिर कहने लगती हूँ तुमसे,
के ऐसा नहीं है, वैसा नहीं है
और तुम पकड़ लेते हो मेरे हाथ...
जैसे झूठ पकड़ा जाता है
एकाएक... एक बार
और सहम जाती हूँ मैं
यूँ ही कभी कभार
कि नहीं लौटाया हो मैंने
कभी कुछ लिया होगा...
तुमसे कोई उधार
जो आज तुमको याद आया
और तुमने बोल दी
ऐसे ही... कोई हँसने रोने की बात
अकस्मात् ।
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