फैल गए स्पर्श तुम्हारे
जैसे गीला रंग
और
पसरती रंगोली में
होली
होली मेरा तन
जैसे भेज रहे हो मुझको
धीरे धीरे तुम संलग्न
लाल रंग वियोग में ला के
बहती अल्पना के कम्पन
जैसे तुम आज प्रात भी
बैठे मेरे संग
जैसे लिपटी देह से अबतक
तुम्हारी देह की कण
भोर पहन के आज तुम्हारे
अलंकार चिन्हार के
जैसे मुझको सींच रहे हों
भीगे हाथ बयार के
अपनी बगिया से भोरे
चुन कर इतने प्यार से
जैसे भेज दिए हों तुमने
फूल हरसिंगार के
तुम फैल गए जैसे चन्दन
और मैं जैसे वन
जैसे कारावास में फैले
मन में कोई घुटन
फैल गए स्पर्श तुम्हारे
जैसे गीला रंग
और पसरती रंगोली में
होली होली मेरा तन
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