Friday 5 May 2023

स्पर्श


फैल गए स्पर्श तुम्हारे 

जैसे गीला रंग 

और पसरती रंगोली में 

होली होली मेरा तन 

 

जैसे भेज रहे हो मुझको 

धीरे धीरे तुम संलग्न 

लाल रंग वियोग में ला के 

बहती अल्पना के कम्पन 

 

जैसे तुम आज प्रात भी 

बैठे मेरे संग 

जैसे लिपटी देह से अबतक 

तुम्हारी देह की कण 

 

भोर पहन के आज तुम्हारे 

अलंकार चिन्हार के 

जैसे मुझको सींच रहे हों 

भीगे हाथ बयार के 

 

अपनी बगिया से भोरे 

चुन कर इतने प्यार से 

जैसे भेज दिए हों तुमने 

फूल हरसिंगार के 

 

तुम फैल गए जैसे चन्दन 

और मैं जैसे वन 

जैसे कारावास में फैले 

मन में कोई घुटन 

 

फैल गए स्पर्श तुम्हारे 

जैसे गीला रंग 

और पसरती रंगोली में 

होली होली मेरा तन 

 


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