Thursday 10 June 2010

परस्पर खेद

अपने भेद मैं तुमको
दे भी दूँ तो, मेरे पास हैं वो

ऐसी कोई बात बताओ
जिस्से तुम ले जाओ
मेरा लेखा संस्मरण का
और वो सारे पाँव

जो कि अपने चिन्ह बनाते
वापस मुझ तक आते हैं
मैं बार बार मिटाता हूँ
वो परिचय से बन जाते हैं

मैं इनसे डरता हूँ
इनमे पता लिखा है मेरा
मेरे गिर्द बनाते हैं ये
पहचानों का घेरा

जिसमें मेरी चादर के
इतने टुकड़े हो जाते हैं
मैं अपने नाम को ढकता हूँ
वो तन भी नहीं छुपाते हैं

मैं नग्न खड़ा चौराहे पे
शर्माता हूँ, घबराता हूँ
अपने रंग बिरंगे कपड़ों
से मैं बाहर आता हूँ

और प्रश्नों की काली परतें
मेरा बदन छुपाती हैं
मैं उत्तर के सादे वस्त्र
चोरी करके लाता हूँ

और पंजी में क़ैदी सा
हो जाता है नामांकन
मैं नंबर बन के जीता हूँ
जोड़ घटाओ का जीवन

अपने भेद मैं तुमको दे भी दूँ तो
मेरे पास हैं वो
ह्रदय बांटना ह्रदय ह्रदय से
सोचता हूँ...अनायास है क्यों?

तस्वीर इन्टरनेट से ली गयी है.

2 comments:

Unknown said...

Nice work...keep it up :)

Shireen said...

beautiful...