Thursday 13 July 2023

भगौड़ी

 हर घड़ी भागी हुई सी

घर से थोड़ी दूर

बढ़ी जाती है

किसी जानिब को वो ज़रूर

 

पर लौटती है इस क़दम

… दो उस क़दम लेके

हाँपती है दम

दलीलें ज़्यादा-कम देके

 


तोलती है पर… उसी दम घर है खोलती

देखती है सूरतें…

दीवारें और दर

हर तरफ़ एक सरसरी है फेरती नज़र

डोलती है याँ-वहाँ… नहीं वो बोलती

 

…है किसी से… क्यों गई थी

आई है अब क्यूँ

हर घड़ी भागी हुई सी

घर से ऐसे यूँ…

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