Friday 23 January 2009

पगला घोड़ा

लो मरी भी हो गई लाल
लिखते लिखते ये स्याही
अब मैं भी सड़कों पे आया
मैं भी बन बैठा राही

जो टूट गया घर मेरा
और टूटा मेरा घेरा
तो मैं भी बन असीम सा नाचूँ
धरा गगन का फेरा




अब मेरे भी बच्चे मर
मैं जैसे पगला घोड़ा
पहली बार यूँ बिन लगाम
इस कोने उस दौड़ा

अपने लिए और बस अपने
पागलपन के ख़ातिर
ये देखो ये गिरा पड़ा
घुड़सवार जो शातिर...

तो इतना सा एकांत मेरा
कैसी आज़ादी लाया
मैं पटख़ पटख़ सिर अपना
चौराहों पे चिल्लाया

जब लिखते लिखते ये स्याही
लो मेरी भी हो गई लाल
तब मैं भी चिथड़न जोड़ूं
और बटोरूँ अपना हाल

तस्वीर इन्टरनेट से ली गयी है.

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